*मोबाइल में रील देखने की लत बच्चों से छीन रही पढ़ाई*
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*मोबाइल में रील देखने की लत बच्चों से छीन रही पढ़ाई*
*उदासी, नींद व काम में मन नहीं लगने के मिले लक्षण*
*रील्स देखने में गुजर रहा दिन*
संपादक वरिष्ठ पत्रकार विशुनदेव त्रिपाठी
लखनऊ उत्तर प्रदेश।।
मोबाइल में रील्स देखना अब लत न रहकर बीमारी में बदलने लगी है। इससे बच्चों व किशोरों के काम करने की दक्षता प्रभावित हो रही है। रील्स देखने वाले उदासी, नींद न आना, चिड़चिड़ाहट से तो गुजर रहे थे, अब स्कूल, कोचिंग या कॉलेज जाने वाले बच्चे अधिक देर तक अपना ध्यान एक विषय पर नहीं लगा पा रहे हैं।
चिकित्सालयों में बड़ी संख्या में रील्स देखने से हुए दुष्प्रभाव के मामले आ रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि रील्स देखते समय 15 से 20 सेकंड ही स्क्रीन पर नजर ठहरती है। फिर दूसरी रील्स आती है। यह आदत बन जाती है व बच्चा किसी एक चीज में अधिक मन नहीं लगा पाता है।
*केस 1*
ध्यान नहीं दे पा रहा था
17 साल का किशोर नीट की तैयारी कर रहा था।अधिक देर ध्यान न दे पाने पर परिजन उसे मानसिक रोग चिकित्सालय ले गए। पता चला कि वह दिन में दो से तीन घंटे रील्स देखता था। इससे उसे नींद न आने व एक काम में मन न लगने की समस्या हुई।
ऐसे हुआ इलाजः
तीन दिन तक काउंसलिंग की। धीरे-धीरे रील देखना बंद की। दो माह तक परिजन उसके साथ रहे। तीन माह में समस्या दूर हुई।
*केस 2*
नींद नहीं आ रही थी
कॉलेज छात्रा को बचपन से ही घबराहट होती थी। नींद न आने से घबराहट बढ़ने लगी। पैनिक अटैक भी आए। परिजन हार्ट अटैक समझकर अस्पताल ले गए, लेकिन ईसीजी नॉर्मल आया। मनोरोग चिकित्सक को दिखाया तो रील देखने की बात सामने आई।
ऐसे हुआ इलाज:
परिजन को उसके साथ समय बिताने की सलाह दी। दो माह बाद वह सामान्य स्थिति में आई। काम में मन न लगने की समस्या बाकी है।
*रील्स देखने से दुष्प्रभाव*
• पढ़ाई और अन्य गतिविधियों में कमी। तेजी से बदलते दृश्य और जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने में समस्या। लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से शारीरिक गतिविधियों में
कमी। नकारात्मक या उत्तेजक सामग्री से चिंता और अवसाद। बातचीत में कमी से सामाजिक कौशल प्रभावित। ■ शिक्षा का स्तर गिरना। बच्चों में आक्रामकता बढ़ना।
*आप ये करें प्रयास*
• बच्चों को खेल, पढ़ाई या कला जैसी गतिविधियों के लिए प्रेरित करें। रील्स के दुष्प्रभावों। पर बच्चों से बात करें। पारिवारिक गतिविधियों को बढ़ावा दें, जैसे फिल्म देखना या खेलना।
*एप लॉक या टायमर लगा सकते हैं*
मोबाइल में डिजिटल वेलबीन का विकल्प या एप है। इसमें किसी एक एप को लॉक या टाइमर लगाया जा सकता है। निश्चित समय पर वह एप लॉक हो जाएगा। पढ़ते समय भी एप लॉक किए जा सकते हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस प्रकार के इंतजामों से बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जा सकता है। हालांकि वे कहते हैं कि परिवार के बाकी सदस्यों को भी जिमेवारी निभाते हुए इस प्रकार की गतिविधियों से दूरी बनानी होगी।
*एक्सपर्ट व्यू*…
बच्चे ही नहीं, हर वर्ग के लोग दो घंटे या उससे अधिक रील्स या वीडियो में दे रहे हैं। हर माह ऐसे केस आते हैं। इससे बच्चों की काम करने की दक्षता कम हो रही है। वे एक काम में अधिक समय ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं। ऐसे में परिवार की भूमिका अहम हो जाती है। ध्यान नहीं देने पर लंबे समय बाद अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर होने की आशंका रहती है।
– अंजली शर्मा अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति
स्वामी एवं सम्पादक-श्री विशुनदेव त्रिपाठी WhatsApp -8756930388 e.mail -vicharpiyush@gmail.com
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